जिन लोगो ने अपनी पत्नी के नाम से प्रॉपर्टी ले रखी हो तो उनको खास खबर मिल रही है। कलकत्ता हाईकोर्ट की तरफ से इस तरह की प्रॉपर्टी पर अहम फैसला आया है। फैसले के मुताबिक, ऐसी प्रॉपर्टी को हमेशा बेनामी संपत्ति नहीं कह सकते है। यह बात पिता के देहांत के बाद बेटे के “बेनामी प्रॉपर्टी” के दावे पर की है।
हाईकोर्ट की बेंच की अहम टिप्पणी
कलकत्ता हाईकोर्ट ने बेनामी प्रॉपर्टी की परिभाषा देखकर निर्णय दिया है। फैसला है अगर पति द्वारा पत्नी के नाम से प्रॉपर्टी खरीदी गई तो उसको हमेशा ही बेनामी प्रॉपर्टी माने, ये अनिवार्य नहीं। बेनामी प्रॉपर्टी के नियम इस प्रॉपर्टी पर हमेशा मान्य नहीं होंगे।
इन केसों के गहराई देखकर ही फैक्ट्स जानने जरूरी होंगे। ऐसी प्रॉपर्टी में पैसे का सोर्स क्या था, इसको भी जानना जरूरी है। किंतु इसको बेनामी प्रॉपर्टी लेनदेन के अंतर्गत हमेशा नहीं रख सकते।
हाईकोर्ट में बेटे के आरोप
हाईकोर्ट में एक बेटा आरोप लगाता है कि उसकी मां को पिता की तरफ से बेनामी प्रॉपर्टी मिली है। केस को सुनते समय कोर्ट ने देखा कि बेटा (वादी) अपने पिता के विरुद्ध सिद्ध न कर पाया कि उस प्रॉपर्टी के बेनामी लेनदेन कैसे है। कोर्ट के मुताबिक, प्रॉपर्टी के बेनामी होने के दावे में उसके बेनामी लेनदेन को सिद्ध करना पड़ेगा। ये न करने पर उस प्रॉपर्टी को बेनामी प्रॉपर्टी नहीं कह सकते है।
बेनामी प्रॉपर्टी के टाइप
बेनामी प्रॉपर्टी 2 टाइप की रहती है जिसमें एक तो वो प्रॉपर्टी है जोकि कोई शख्स उसके पैसे से किसी अन्य के नाम पर खरीदे किंतु उसको फायदा देने की मंशा न हो। दूसरी वो है जिसमें संपत्ति मालिक इसका मालिकाना अधिकार अन्य को सीधा ही देता और प्रॉपर्टी को आगे ट्रांसफर करने की इच्छा न हो।
महिला के पति का देहांत हुआ
हाईकोर्ट में चल रहे इस केस में पिता काफी वर्षों पहले पत्नी के नाम से प्रॉपर्टी ले चुके थे और पत्नी के पास इनकम सोर्स नहीं था। थोड़े वक्त बाद प्रॉपर्टी पर घर भी बना और 1999 में पति का देहांत हुआ। अब उत्तराधिकार कानून के मुताबिक, इस प्रॉपर्टी में पति की पत्नी पुत्र और पुत्री समान अधिकारी बन गए।
बेटे को मां से प्रॉपर्टी का गिफ्ट
प्रॉपर्टी में बने घर पर बेटा काफी सालो तक रहा किंतु फिर चला गया। किन्तु मां उर बेटी प्रॉपर्टी के एक समान बंटवारे पर सहमत नहीं थी। बेटे ने प्रॉपर्टी को 3 बराबर भागों में बांटना चाह और असफल होने पर इसको “बेनामी प्रॉपर्टी” कहकर अदालत में दावा किया। इसी बीच मां ने अपने अधिकार की प्रॉपर्टी बेटी के नाम किया। अब कोर्ट का फैसला है कि हमेशा प्रॉपर्टी को “बेनामी प्रॉपर्टी” नहीं मान सकते है।