किसी केस के सिलसिले में कई बार कुछ ऐसे सबूत भी इकट्ठा कर लिए जाते हैं, जो कानूनी रूप से मान्य नहीं होते हैं। गैरकानूनी तरीके से की गई वीडियो रिकॉर्डिंग पर भारतीय कानुक क्या कहता है, इसे समझने के लिए एक उदाहरण का प्रयोग कर सकते हैं।
गैरकानूनी तरीके से की गई रिकॉर्डिंग, क्या अदालत में मानी जाएगी सबूत?
यदि आप किसी विवाद में फंसे हुए हैं, जिसमें आपको कोई फोन पर धमकी देता है, या सरेआम धमकी आपको दी जाती है। और यदि आप उस धमकी को छुप कर रिकॉर्ड करते हैं, जिस से धमकी देने वाले को पता ही न चले तो ऐसे में यह करना भी एक कानूनन अपराध है।
इस से यह समझा जा सकता है, कि बिना सामने वाले की अनुमति के उसका फोन काल रिकॉर्ड या रिकॉर्डिंग नहीं की जा सकती है। ऐसे में यदि आप ऐसी रिकॉर्डिंग को कोर्ट में पेश करते हैं तो क्या छुपा कर बनाई गई रिकॉर्डिंग किसी सबूत के रूप में काम करती है? इस पर भारतीय कानून क्या कहता है।
भारतीय कानून क्या कहता है?
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) में किसी भी केस से जुड़े सबूतों एवं उन पर दी जाने वाली स्वीकृति के नियम लिखे गए हैं। इस अधिनियम के अन्तर्गत सभी साक्ष्यों/सबूतों की जानकारी दी गई है, जो कानूनी रूप से स्वीकार हैं, और जिन्हें अदालत में स्वीकार किया जा सकता है। इसमें गैरकानूनी तरीके से की गई रिकॉर्डिंग में कुछ बिंदुओं का ध्यान रखना होता है। जो इस प्रकार हैं:-
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के अन्तर्गत, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को अदालत में पेश करने से पहले जरूरी है, कि उन्हें सही से कलेक्ट किया गया हो। जिसे साफ शब्दों में कह सकते हैं कि उस पर किसी प्रकार की छेड़छाड़/एडिटिंग नहीं होनी चाहिए। और उचित प्रक्रिया के माध्यम से ही उसे रिकॉर्ड किया गया हो।
- IEA की धारा 71 में अदालत में पेश किए गए सबूतों की स्वीकृति को निर्धारित किया जाता है। यदि गैरकानूनी तरीके से रिकॉर्ड किया गया हो तो ऐसे में अदालत स्वीकृति नहीं देती है। फिर भी कुछ मामलों में इस प्रकार की रिकॉर्डिंग को अदालत मान्य कर सकती है।
30 अगस्त 2023 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस पर फैसला सुनाते हुए बताया था कि अब अवैध फोन रिकॉर्डिंग को भी सबूत के रूप में कोर्ट में पेश कर सकते हैं, इसमें सिर्फ अवैध फोन रिकॉर्डिंग की जानकारी दी गई है विजुअल रिकॉर्डिंग की बात शामिल नहीं की गई है।