प्रॉपर्टी खरीदने का निर्णय एक बड़ा वित्तीय निवेश है। अक्सर लोग प्रॉपर्टी खरीदने के बाद केवल उसकी रजिस्ट्री (Property Registry) करवा लेते हैं और इसे अंतिम प्रक्रिया मान लेते हैं। हालांकि यह सोच एक बड़ी भूल साबित हो सकती है। रजिस्ट्री के बाद भी एक और महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है जिसे पूरा करना अनिवार्य है। यह प्रक्रिया है म्यूटेशन या नामांतरण (Mutation of Property), जो आपको प्रॉपर्टी का वास्तविक मालिक बनने का अधिकार देती है।
यह है रजिस्ट्रेशन का नियम
भारतीय रजिस्ट्रेशन एक्ट (Indian Registration Act) के तहत, ₹100 से अधिक मूल्य की किसी भी प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन (Property Registration) अनिवार्य है। इस प्रक्रिया के दौरान खरीदार और विक्रेता दोनों की व्यक्तिगत जानकारी, जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड और बैंक डिटेल्स जरूरी होती हैं। इसके अलावा प्रॉपर्टी ट्रांसफर (Property Transfer) के लिए इसे नजदीकी सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में दर्ज कराना भी आवश्यक है।
हालांकि रजिस्ट्री सिर्फ प्रॉपर्टी खरीद के दस्तावेजी प्रमाण के रूप में कार्य करती है। इसके बावजूद, रजिस्ट्री के बाद नामांतरण कराना बेहद जरूरी है। नामांतरण से ही प्रॉपर्टी के अधिकार आधिकारिक रूप से खरीदार के नाम पर दर्ज किए जाते हैं।
म्यूटेशन क्यों है जरूरी?
म्यूटेशन या नामांतरण (Property Mutation) वह प्रक्रिया है जिससे सरकारी रिकॉर्ड में प्रॉपर्टी के नए मालिक का नाम दर्ज किया जाता है। यह प्रक्रिया प्रॉपर्टी से संबंधित सभी कानूनी विवादों को समाप्त करती है और मालिकाना हक को सुरक्षित बनाती है। यदि म्यूटेशन नहीं कराया गया, तो पहले मालिक या किसी अन्य पक्ष द्वारा विवाद उत्पन्न हो सकता है।
इसके अलावा, म्यूटेशन न कराने की स्थिति में खरीदार को प्रॉपर्टी टैक्स भुगतान, बिजली कनेक्शन और अन्य सुविधाओं के अधिकार प्राप्त नहीं होते।
नामांतरण की प्रक्रिया और समय सीमा
नामांतरण प्रक्रिया हर राज्य में भिन्न होती है। उदाहरण के लिए हरियाणा में इसे “इंतकाल” कहते हैं और इसे तुरंत आवेदन करना होता है। अन्य राज्यों में यह प्रक्रिया कुछ सप्ताह या महीनों में पूरी होती है। इसके लिए निम्न दस्तावेजों की आवश्यकता होती है:
- रजिस्टर्ड सेल डीड (Registered Sale Deed)
- खरीदार और विक्रेता की पहचान प्रमाण (ID Proofs)
- प्रॉपर्टी टैक्स की रसीद (Property Tax Receipt)
धोखाधड़ी से बचने के उपाय
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले सुनिश्चित करें कि विक्रेता ने उस प्रॉपर्टी पर किसी प्रकार का बकाया लोन या अन्य कानूनी विवाद नहीं रखा है। कई मामलों में, प्रॉपर्टी को दो बार बेचने की घटनाएं सामने आती हैं। यह समस्या म्यूटेशन न कराने के कारण उत्पन्न होती है। म्यूटेशन कराने से सरकारी रिकॉर्ड में प्रॉपर्टी का विवरण अद्यतन हो जाता है, जिससे धोखाधड़ी की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं।
1. म्यूटेशन क्या है?
म्यूटेशन या नामांतरण वह प्रक्रिया है जिससे सरकारी रिकॉर्ड में प्रॉपर्टी के नए मालिक का नाम दर्ज किया जाता है।
2. रजिस्ट्री और म्यूटेशन में क्या अंतर है?
रजिस्ट्री केवल प्रॉपर्टी के बिक्री का दस्तावेजी प्रमाण है, जबकि म्यूटेशन से मालिकाना हक आधिकारिक रूप से खरीदार के नाम पर स्थानांतरित होता है।
3. म्यूटेशन कराने में कितना समय लगता है?
यह प्रक्रिया राज्य और स्थानीय नियमों के अनुसार अलग-अलग होती है। आमतौर पर इसे पूरा होने में कुछ सप्ताह से लेकर महीनों तक का समय लग सकता है।
4. म्यूटेशन न कराने के क्या परिणाम हो सकते हैं?
म्यूटेशन न कराने से प्रॉपर्टी पर कानूनी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। साथ ही, खरीदार को प्रॉपर्टी टैक्स और अन्य उपयोगिताओं का अधिकार नहीं मिलता।
5. म्यूटेशन के लिए कौन-कौन से दस्तावेज जरूरी हैं?
रजिस्टर्ड सेल डीड, पहचान प्रमाण, प्रॉपर्टी टैक्स की रसीद और अन्य आवश्यक दस्तावेज म्यूटेशन के लिए आवश्यक होते हैं।
प्रॉपर्टी खरीदना एक बड़ा निवेश है, लेकिन इसकी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। रजिस्ट्री के साथ-साथ म्यूटेशन कराना न केवल प्रॉपर्टी के कानूनी स्वामित्व की पुष्टि करता है, बल्कि भविष्य में किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी से बचाने में मदद करता है।