सरकारी नौकरी और एफआईआर (FIR) का मुद्दा हमेशा से विवादों और चर्चाओं का विषय रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज होना सरकारी नौकरी ना देने का आधार नहीं हो सकता।
यह फैसला केरल हाई कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए दिया गया, जिसमें कहा गया था कि केवल आपराधिक मामला दर्ज होने के आधार पर किसी उम्मीदवार को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।
सरकारी नौकरी और FIR पर बड़ा फैसला
14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस पीएमएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने केरल सरकार की याचिका खारिज कर दी, जिसमें हाई कोर्ट के निर्णय को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने सितंबर 2023 में दिए अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि उम्मीदवार के चरित्र और रिकॉर्ड की जांच करते समय सिर्फ आरोप या FIR दर्ज होना पर्याप्त आधार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया है और इसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। यह फैसला न केवल न्यायपालिका के संतुलित दृष्टिकोण को दिखाता है बल्कि सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के अधिकारों की रक्षा करता है।
आपराधिक मामलों और सरकारी नौकरी के अधिकारों पर विचार
हाई कोर्ट के फैसले में यह भी कहा गया कि आपराधिक मामले में बरी होने के बावजूद किसी व्यक्ति को नौकरी में स्वतः प्रवेश का अधिकार नहीं होता। हालांकि, केरल प्रशासनिक न्यायाधिकरण (KAT) के आदेश के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को मामले से बरी कर दिया गया है, तो उसे सेवा में शामिल होने का मौका दिया जा सकता है।
इस संदर्भ में, हाई कोर्ट ने केएटी के आदेश को बरकरार रखा और राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी। बाद में, सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को सही ठहराया और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस संदर्भ में अपनी कार्रवाई करते समय उम्मीदवार के अधिकारों का सम्मान करे।
सुप्रीम कोर्ट का पूर्व फैसला और मौजूदा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सतीश चंद्र यादव बनाम केंद्र सरकार के फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें यह कहा गया था कि आपराधिक मामला दर्ज होना या बरी हो जाना किसी व्यक्ति की नौकरी पाने की योग्यता से जुड़ा नहीं है। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि सरकार को यह अधिकार है कि वह उम्मीदवार के चरित्र और व्यवहार की विस्तृत जांच कर सके।
उम्मीदवारों के लिए क्या है संदेश?
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि आपराधिक मामले का दर्ज होना सरकारी नौकरी के सपनों के लिए अवरोध नहीं बन सकता। लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि न्यायपालिका और प्रशासन दोनों, उम्मीदवार के चरित्र और रिकॉर्ड की निष्पक्ष जांच करें।
प्रश्न 1: क्या FIR दर्ज होना सरकारी नौकरी में पूरी तरह अयोग्यता का कारण है?
नहीं, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, केवल FIR दर्ज होना सरकारी नौकरी ना देने का आधार नहीं हो सकता।
प्रश्न 2: क्या आपराधिक मामले से बरी होने के बाद नौकरी पाना आसान हो जाता है?
नहीं, बरी होने के बावजूद नौकरी में प्रवेश स्वतः नहीं मिलता। इसके लिए प्रशासनिक और कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है।
प्रश्न 3: क्या सरकार को उम्मीदवार के चरित्र की जांच का अधिकार है?
हां, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि सरकार को उम्मीदवार के चरित्र और व्यवहार की जांच करने का अधिकार है।
यह निर्णय सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल केरल हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, बल्कि यह संदेश भी दिया कि प्रशासनिक प्रक्रियाएं निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए।