हर प्रॉपर्टी खरीददार अपने स्वामित्व को लेकर हमेशा सजग रहता है। लेकिन जब सरकार द्वारा निजी संपत्ति के अधिग्रहण (private property acquisition) की बात होती है, तो यह सवाल खड़ा होता है कि क्या सरकार को इसका अधिकार है?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसने इस सवाल का जवाब स्पष्ट कर दिया है। इस फैसले ने 46 साल पुराने एक निर्णय को पलटते हुए, निजी संपत्ति के अधिग्रहण से जुड़े राज्य सरकारों के अधिकारों पर लगाम लगाई है।
क्या प्राइवेट प्रॉपर्टी पर भी है सरकार का हक?
इस महत्वपूर्ण फैसले को सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) समेत नौ जज शामिल थे। इनमें से सात न्यायाधीशों ने एकमत से फैसला दिया, जबकि दो जजों—जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सुधांशु धूलिया ने असहमति जताई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हर प्राइवेट प्रॉपर्टी को “सार्वजनिक भलाई” के नाम पर कब्जे में नहीं लिया जा सकता। केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही ऐसा संभव है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा 1978 का फैसला?
1978 में जस्टिस कृष्णा अय्यर द्वारा सुनाए गए एक फैसले में प्राइवेट प्रॉपर्टी को सामुदायिक संसाधन माना गया था, जिन्हें राज्य आवश्यकता पड़ने पर अधिग्रहित कर सकता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे वर्तमान बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था (market-oriented economy) के संदर्भ में अप्रासंगिक करार दिया। कोर्ट ने कहा कि भारत अब तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था है और संपत्ति पर व्यक्ति के अधिकारों का सम्मान होना चाहिए।
अनुच्छेद 31सी और 39(बी) पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 31सी (Article 31C) को उसके मूल स्वरूप में बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया कि यह केवल विशेष मामलों में ही लागू होगा। मुख्य न्यायाधीश ने अनुच्छेद 39(बी) के महत्व को दोहराते हुए कहा कि सार्वजनिक भलाई के लिए निजी संपत्ति के अधिग्रहण का अधिकार सीमित होना चाहिए। उन्होंने 42वें संविधान संशोधन की धारा 4 का समर्थन करते हुए कहा कि इसे सही ढंग से लागू करने की आवश्यकता है।
देखें क्या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 16 याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए महाराष्ट्र सरकार के एक कानून को भी चुनौती दी, जिसमें प्राइवेट प्रॉपर्टी को सुरक्षा और मरम्मत के लिए कब्जे में लेने का अधिकार दिया गया था। कोर्ट ने इस संशोधन को हितकारी नहीं माना और कहा कि यह प्रॉपर्टी मालिकों के अधिकारों का उल्लंघन है।
1. क्या सरकार किसी भी प्राइवेट प्रॉपर्टी को कब्जे में ले सकती है?
नहीं, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के अनुसार, सरकार केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही निजी संपत्ति को अधिग्रहित कर सकती है।
2. अनुच्छेद 31सी और 39(बी) में क्या अंतर है?
अनुच्छेद 31सी निजी संपत्ति पर नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करता है, जबकि अनुच्छेद 39(बी) सार्वजनिक भलाई के लिए संपत्ति के अधिग्रहण और पुनर्वितरण को लेकर राज्य सरकारों की शक्तियों से संबंधित है।
3. क्या यह फैसला सभी राज्यों पर लागू होगा?
हां, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पूरे भारत में लागू होगा और सभी राज्य सरकारों को इसका पालन करना होगा।
4. 1978 का फैसला क्यों पलटा गया?
1978 का फैसला उस समय की समाजवादी अर्थव्यवस्था पर आधारित था। मौजूदा बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था में इसे अप्रासंगिक मानते हुए पलटा गया।
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला प्रॉपर्टी मालिकों के अधिकारों को नई मजबूती प्रदान करता है। यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि सरकारें निजी संपत्तियों पर केवल जरूरी परिस्थितियों में ही दावा कर सकती हैं। भारत की बदलती आर्थिक संरचना और नागरिक अधिकारों के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए, यह फैसला न्याय का आदर्श उदाहरण बनता है।