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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पैतृक कृषि भूमि बेचने से जुड़ा ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि हिन्दू उत्तराधिकारी अपनी पैतृक कृषि भूमि को किसी बाहरी व्यक्ति को बेच नहीं सकते, पहले परिवार के सदस्य को मिलेगी प्राथमिकता। यह निर्णय परिवार की संपत्ति को बाहरी हस्तक्षेप से बचाएगा। जानिए इस फैसले के पीछे की वजहें और इसके सभी कानूनी पहलू।

By Akshay Verma
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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पैतृक कृषि भूमि बेचने से जुड़ा ऐतिहासिक फैसला
पैतृक कृषि भूमि बेचने से जुड़ा ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जो उन लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिनके पास पैतृक कृषि भूमि (Ancestral Agricultural Land) है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर कोई हिन्दू उत्तराधिकारी अपनी पैतृक कृषि भूमि का हिस्सा बेचना चाहता है, तो सबसे पहले उसे अपने परिवार के सदस्यों को ही प्राथमिकता देनी होगी।

इस निर्णय से स्पष्ट है कि ऐसी संपत्ति किसी बाहरी व्यक्ति को बेचने से पहले उत्तराधिकारी को परिवार के सदस्यों के अधिकार को मान्यता देनी होगी। यह फैसला न्यायमूर्ति यूयू ललित और एमआर शाह की पीठ द्वारा हिमाचल प्रदेश के एक मामले में सुनाया गया।

पैतृक कृषि भूमि बेचने से जुड़ा क्यों लिया गया यह निर्णय?

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय समाज में पैतृक संपत्ति के महत्त्व को बनाए रखने के लिए लिया गया है। पैतृक कृषि भूमि का मुद्दा धारा 22 के अंतर्गत आता है, जो परिवार के सदस्यों के अधिकार को सुरक्षित करता है। धारा 22 में प्रावधान है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत के होती है, तो उसकी संपत्ति उसके उत्तराधिकारियों पर आ जाती है। अगर उत्तराधिकारी अपने हिस्से को बेचना चाहता है, तो पहले उसे अन्य उत्तराधिकारियों को इस संपत्ति को खरीदने का मौका देना होगा।

धारा 22 के अनुसार प्राथमिकता का अधिकार

धारा 22 भारतीय उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Law) का वह प्रावधान है, जो परिवार की संपत्ति को परिवार में ही बनाए रखने की व्यवस्था करता है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि यदि किसी उत्तराधिकारी को अपने हिस्से को बेचना है, तो सबसे पहले परिवार के अन्य सदस्यों को इसका प्रस्ताव देना होगा।

अगर वे संपत्ति को खरीदने से इनकार करते हैं, तो ही इसे बाहरी व्यक्ति को बेचा जा सकता है। इस फैसले का मकसद यह है कि पैतृक संपत्ति परिवार में ही रहे और बाहरी लोग इसमें दखल न दें।

जानें क्या था पूरा मामला?

इस केस में, लाजपत नाम के एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी पैतृक कृषि भूमि उसके दो बेटों, नाथू और संतोष, में विभाजित हो गई थी। संतोष ने अपना हिस्सा एक बाहरी व्यक्ति को बेच दिया, जिससे नाथू ने इसे चुनौती दी। नाथू ने तर्क दिया कि उसे धारा 22 के तहत संपत्ति पर प्राथमिकता का अधिकार है।

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ट्रायल कोर्ट ने नाथू के पक्ष में निर्णय सुनाया और इसके बाद हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा। अंततः यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जिसने भी नाथू के पक्ष में फैसला सुनाया।

पैतृक संपत्ति में धारा 4(2) का प्रभाव

इस मामले में यह भी सवाल उठा कि क्या धारा 4(2) का समाप्त होना इस फैसले पर कोई प्रभाव डालेगा। धारा 4(2) काश्तकारी के अधिकारों से संबंधित था, जो अब समाप्त हो चुका है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 4(2) के समाप्त होने से इस निर्णय पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि यह पैतृक संपत्ति के अधिकारों से संबंधित है। पैतृक संपत्ति का उद्देश्य परिवार में ही संपत्ति को बनाए रखना है और बाहरी लोगों की इसमें भागीदारी रोकना है।

फैसले का मुख्य उद्देश्य

कोर्ट के इस फैसले का प्रमुख उद्देश्य यह है कि परिवार की संपत्ति परिवार के भीतर ही बनी रहे और बाहरी लोग इसमें शामिल न हों। इसे बनाए रखने के लिए ही यह व्यवस्था की गई है कि पहले परिवार के सदस्यों को संपत्ति बेचने का प्रस्ताव दिया जाए। अगर वे इसे खरीदने में रुचि नहीं दिखाते, तो ही इसे बाहरी व्यक्ति को बेचा जा सकता है। इस निर्णय के पीछे कोर्ट का मकसद है कि पैतृक संपत्ति के महत्व को बनाए रखा जाए।

इस फैसले के अन्य पहलू और भविष्य पर प्रभाव

यह फैसला भारतीय समाज में पैतृक संपत्ति के मूल्य और उसके सुरक्षित रखने के महत्व को ध्यान में रखकर लिया गया है। इस निर्णय का प्रभाव केवल कृषि भूमि पर ही नहीं, बल्कि अन्य प्रकार की पैतृक संपत्तियों पर भी पड़ सकता है। परिवारों के बीच अक्सर संपत्ति के बंटवारे और बिक्री के मामलों में विवाद उत्पन्न होते हैं। ऐसे मामलों में यह फैसला एक मार्गदर्शन के रूप में कार्य करेगा और परिवार के सदस्यों के अधिकारों को बनाए रखने में सहायक होगा।

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