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अब शादीशुदा बेटियों को भी मिलेगा खेत की जमीन पर हक! सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

क्या शादीशुदा बेटियां भी होंगी अपने पिता की जमीन की हकदार? सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर संज्ञान लेते हुए कृषि भूमि उत्तराधिकार में भेदभाव के खिलाफ बड़ा कदम उठाया है। जानिए कैसे यह फैसला महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की दिशा में नई मिसाल कायम कर सकता है।

By Akshay Verma
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अब शादीशुदा बेटियों को भी मिलेगा खेत की जमीन पर हक! सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
अब शादीशुदा बेटियों को भी मिलेगा खेत की जमीन पर हक!

भारत में कृषि भूमि पर उत्तराधिकार का अधिकार अब तक कई विवादों और असमानताओं का कारण बना हुआ है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण याचिका पर संज्ञान लिया है, जिसमें विवाहित महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण उत्तराधिकार प्रावधानों को चुनौती दी गई है। यह मुद्दा खासतौर पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कृषि भूमि कानूनों में पाया गया है, जहां शादीशुदा बेटियों को कृषि भूमि पर उत्तराधिकार से वंचित किया जाता है।

क्या है मुद्दा?

सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत इस जनहित याचिका में दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 और उत्तराखंड भूमि कानूनों के अंतर्गत विवाहित महिलाओं को उनके उत्तराधिकार से वंचित किया गया है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। याचिका में यह तर्क दिया गया है कि कृषि भूमि उत्तराधिकार में विवाहित बेटियों को शामिल न करना लैंगिक समानता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही

सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस याचिका पर संज्ञान लिया है और केंद्र सरकार के साथ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तिथि 10 दिसंबर निश्चित की है।

विवाह के बाद समाप्त होता है उत्तराधिकार का अधिकार

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 108 और धारा 110 के अंतर्गत यह प्रावधान है कि अविवाहित बेटियों को कृषि भूमि पर प्राथमिकता दी जाती है, जबकि शादीशुदा बेटियों को इस अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। इसका अर्थ है कि अगर कोई महिला विवाह कर चुकी है, तो उसे अपने माता-पिता की कृषि भूमि में उत्तराधिकार का अधिकार नहीं मिलेगा। यह प्रावधान समाज में लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देता है और महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन करता है।

पुनर्विवाह से भी खत्म हो जाता है अधिकार

याचिका में यह भी बताया गया है कि यदि कोई विधवा अपने पति की कृषि भूमि में उत्तराधिकारी बनती है और बाद में उसका पुनर्विवाह हो जाता है, तो उसका यह अधिकार समाप्त हो जाता है। राजस्व संहिता की धारा 109 में यह प्रावधान किया गया है कि पुनर्विवाह के बाद विधवा का अधिकार उसी तरह खत्म हो जाता है जैसे कि उसकी मृत्यु हो गई हो। इस प्रकार, पुनर्विवाह को महिला की मृत्यु के समान माना जाता है, जो न केवल अनुचित है, बल्कि संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है।

पुरुषों के लिए भेदभाव क्यों नहीं?

याचिका में यह भी कहा गया है कि पुरुषों के विवाह के बाद उनकी कृषि भूमि पर उत्तराधिकार का अधिकार समाप्त नहीं होता है, जबकि महिलाओं के लिए विवाह के बाद यह अधिकार समाप्त हो जाता है। यह स्पष्ट रूप से लैंगिक असमानता को दर्शाता है।

अगर कोई महिला अपने पति की भूमि में उत्तराधिकारी बनती है और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उस भूमि का अधिकार उसके पति के परिवार को मिलता है, न कि महिला के अपने परिवार को। यह स्थिति न केवल असमानता को बढ़ावा देती है, बल्कि इसे असंवैधानिक भी बनाती है।

क्यों जरूरी है उत्तराधिकार में समानता?

कृषि भूमि पर महिलाओं का अधिकार उनके आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण हिस्सा है। महिलाओं को उत्तराधिकार का समान अधिकार देने से न केवल उनकी स्थिति में सुधार होगा बल्कि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और समर्थ भी बनेंगी। विवाह के बाद महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने पैतृक संपत्ति पर भी उतनी ही स्वतंत्रता और अधिकार प्राप्त करें जितना कि पुरुषों को मिलता है।

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इस मामले का सामाजिक और कानूनी महत्व

यह मामला भारतीय समाज में महिलाओं के उत्तराधिकार के अधिकार की एक गहन समस्या को उजागर करता है। कृषि भूमि पर महिलाओं के अधिकार का मतलब केवल जमीन का हिस्सा मिलना नहीं है, बल्कि यह उनके सशक्तिकरण और समाज में उनके योगदान को पहचान दिलाने का भी माध्यम है। इस याचिका से यह उम्मीद की जा सकती है कि देश में एक समान और लैंगिक समानता वाला उत्तराधिकार कानून बने, जो महिलाओं को उनके हक से वंचित न करे।

1. क्या विवाहित बेटियों को उत्तराधिकार का अधिकार नहीं है?
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में वर्तमान में विवाहित बेटियों को कृषि भूमि पर उत्तराधिकार का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में इस भेदभाव को चुनौती दी गई है।

2. क्या पुनर्विवाह से महिला का उत्तराधिकार समाप्त हो जाता है?
हां, राजस्व संहिता के अनुसार, पुनर्विवाह के बाद महिला का कृषि भूमि पर उत्तराधिकार समाप्त हो जाता है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन माना जा रहा है।

3. यह कानून कब तक लागू रहेगा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया है और केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। यह कानून कब तक लागू रहेगा, यह न्यायालय के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा।

4. क्या उत्तराधिकार कानून पुरुषों और महिलाओं के लिए समान है?
नहीं, वर्तमान कानूनों में पुरुषों को विवाह के बाद भी उत्तराधिकार का अधिकार मिलता है, जबकि महिलाओं के लिए विवाह के बाद यह अधिकार समाप्त हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कृषि भूमि पर विवाहित महिलाओं के उत्तराधिकार के अधिकार के मुद्दे पर संज्ञान लिया है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विवाहित बेटियों को कृषि भूमि पर हक नहीं मिलता, जो कि असंवैधानिक बताया जा रहा है। कोर्ट का यह कदम महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

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