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Supreme Court: 48 साल से चल रहे इस केस पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला, जान लें किराएदार और मालिक मालिक के बीच का ये मामला

किराए पर दी गई दुकान के विवाद में मकान मालिक को 48 साल लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने देशभर के मकान मालिकों और किराएदारों के लिए मिसाल कायम कर दी है। जानें क्यों सुप्रीम कोर्ट को लेना पड़ा यह सख्त फैसला और किराए संबंधी विवादों में क्या है इसका महत्व!

By Akshay Verma
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Supreme Court: 48 साल से चल रहे इस केस पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला, जान लें किराएदार और मालिक मालिक के बीच का ये मामला

किराए पर मकान देना या लेना एक ऐसा कार्य है, जिसे पूरा करते समय सभी नियमों और कागजी कार्रवाई का पालन करना चाहिए, क्योंकि इसको लेकर आए दिन विवाद सामने आते रहते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक ऐसा ही मामला देखने को मिला, जिसमें दिल्ली के मुख्य व्यापारिक क्षेत्र कनॉट प्लेस (Connaught Place) में एक मकान मालिक और किराएदार के बीच 48 सालों तक लंबी कानूनी लड़ाई चली।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला आज का नहीं, बल्कि कई दशकों पुराना है। इसकी शुरुआत 1930 के दशक में हुई, जब 1936 में एक केमिस्ट की दुकान एक कंपनी को किराए पर दी गई थी। हालांकि, 1974 में मकान मालिक ने बेदखली की कार्यवाही शुरू की, जब किराएदार ने बिना अनुमति के दुकान का एक हिस्सा अन्य लोगों को किराए पर देना शुरू कर दिया। इस मामले में मकान मालिक ने दिल्ली रेंट कंट्रोलर (Delhi Rent Controller) से शिकायत की और आरोप लगाया कि किराएदार ने बिना अनुमति के दुकान को तीन चिकित्सकों को सबलेट कर दिया।

अतिरिक्त किराया नियंत्रण का निर्णय

इस मामले में अतिरिक्त किराया नियंत्रण (Additional Rent Control) ने 1997 में मकान मालिक की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सबलेटिंग का ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया है। उनका कहना था कि किराएदार ने तीसरे व्यक्ति को दुकान किराए पर नहीं दी, जिसका पुख्ता सबूत नहीं था। इसके बाद मकान मालिक ने न्यायाधिकरण (Tribunal) में अपील की। न्यायाधिकरण ने मकान मालिक के पक्ष में आदेश दिया और दुकान से सबलेटिंग पर रोक लगाई।

किराएदार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में की याचिका

इस निर्णय के बाद, किराएदार ने दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने 2018 में न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि किराएदार का दुकान पर प्रत्यक्ष नियंत्रण था और सबलेटिंग का कोई ठोस आधार नहीं है। न्यायालय का कहना था कि सबूत किराएदार के पक्ष में थे और इस तरह की सबलेटिंग का आरोप सही नहीं ठहराया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला

उच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद, मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचा। मकान मालिक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रुव मेहता और जीवेश नागरथ ने दलील दी कि सबलेटिंग साबित हो चुकी थी और उच्च न्यायालय को न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द नहीं करना चाहिए था। मकान मालिक के वकीलों ने तर्क दिया कि किराएदार ने दुकान का एक हिस्सा चिकित्सकों को दिया था, जो स्पष्ट रूप से सबलेटिंग का मामला था।

किराएदार के तर्क

किराएदार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राणा मुखर्जी ने कोर्ट में तर्क दिया कि दुकान पर कभी भी पूर्ण नियंत्रण चिकित्सकों को नहीं सौंपा गया था और सभी प्रवेश और निकास का नियंत्रण किराएदार के पास ही था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति विनीत सरण और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि उच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का अत्यधिक उपयोग किया और न्यायाधिकरण के निर्णय को रद्द करना गलत था। अदालत ने माना कि मामले में किराएदार द्वारा सबलेटिंग का आरोप सही था और उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं थी। यह फैसला दिल्ली के मकान मालिकों और किराएदारों के बीच जारी विवादों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।

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मकान मालिक और किराएदारों के लिए सीख

यह मामला मकान मालिकों और किराएदारों दोनों के लिए एक सीख है कि किसी भी संपत्ति को किराए पर देने या लेने से पहले स्पष्ट नियमों और कागजी कार्रवाई का पालन किया जाना चाहिए। बिना सहमति के सबलेटिंग जैसी गतिविधियाँ भविष्य में कानूनी विवादों को जन्म दे सकती हैं। मकान मालिकों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने किरायेदारों से स्पष्ट अनुबंध करें और किसी भी प्रकार की किराए संबंधी समस्याओं से बचने के लिए कानूनी सलाह अवश्य लें।

किराए संबंधी अनुबंध में क्या होना चाहिए?

  1. अनुबंध में किराया दर और भुगतान की तारीख स्पष्ट होनी चाहिए।
  2. किराएदार किस प्रकार से संपत्ति का उपयोग कर सकता है, इसका उल्लेख होना चाहिए।
  3. यदि मकान मालिक सबलेटिंग की अनुमति नहीं देता, तो इसका उल्लेख विशेष रूप से किया जाना चाहिए।
  4. अनुबंध में नवीनीकरण की शर्तों को स्पष्ट करना चाहिए।
  5. कानूनी सलाह के साथ एक सुस्पष्ट अनुबंध बनाना विवादों से बचने में सहायक होता है।

Frequently Asked Questions (FAQs)

1. क्या मकान मालिक बिना सहमति के सबलेटिंग पर रोक लगा सकता है?
जी हां, अगर अनुबंध में सबलेटिंग पर रोक है, तो मकान मालिक बिना सहमति के सबलेटिंग को रोक सकता है।

2. क्या किराएदार के पास अनुबंध नवीनीकरण का अधिकार है?
यह अनुबंध की शर्तों पर निर्भर करता है। नवीनीकरण का अधिकार तभी होता है जब अनुबंध में इसका प्रावधान हो।

3. क्या इस मामले से अन्य मकान मालिकों को कोई फायदा होगा?
हां, यह फैसला अन्य मकान मालिकों के लिए मिसाल के रूप में काम करेगा, जिससे किराए संबंधी अनुबंधों में स्पष्टता और सुरक्षा बढ़ेगी।

4. क्या सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अपील किया जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अंतिम होता है, लेकिन समीक्षा याचिका दायर की जा सकती है।

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