दिल्ली हाईकोर्ट का कहना है कि किसी किराएदार के पास बेदखली आदेश के विरुद्ध अपील करने का हक नहीं है। चूंकि दिल्ली रेंट कंट्रोलर (DRC) की धारा 25B (8) के प्रावधानों से ऐसा करने पर रोक है। जस्टिस मनोज झा से स्पष्टता किराएदारों की पिटीशन को नकार देते है।
इन पिटीशन से अदालत में प्रश्न किया गया है कि क्या एडिशनल रेंट कंट्रोलर के 10 मार्च 2022 में आए ऑर्डर के विरुद्ध किरायेदार रिविजन की याचिका को दाखिल कर सकेंगे या क्या DRC,1958 में धारा 38 के अंतर्गत उनकी पिटीशन विचार योग्य है।
मकान को किराए पर देने का केस
केस था कि मकान के मालिक की तरफ से किरायेदार को उसकी संपत्ति से निकालने का आदेश जारी करने की अपील पर पिटीशन दाखिल की गई। इस पिटीशन को साल 2012 में दाखिल किया गया था। किराएदार की डिमांड से रेंट कंट्रोलर ने उनको अपने बचाव की परमिशन दी। तब मालिक अपील के साथ हाईकोर्ट पहुंचा। ऐसे में 14 फरवरी 2017 के फैसले में किरायेदार को बचाने का फैसला देने वाले आदेश को कैंसिल किया गया और किरायेदार को मकान छोड़ने का फैसला मिला।
हाईकोर्ट ने वारंट जारी किया
हाईकोर्ट को पता चला कि ये फैसला पहले ही आखिरी रूप ले लिया है चूंकि साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से किरायेदारों की स्पेशल लीव की याचिका को अस्वीकृत किया था। किंतु किराए की परिसर को वापसी पाने को एक्सीक्यूशन पिटीशन को दाखिल किया गया तब इस पर किराएदारों को परेशानी हुई। इसको 10 मार्च 2022 में रेंट कंट्रोलर ने निरस्त किया। किरायेदारों के विरुद्ध कब्जे का वारंट आया वो भी ताला, दरवाजा और खिड़की तोड़ने की परमिशन सहित।
DRC के सेक्शन के अनुसार फैसला
इसी फैसले पर किराएदारों की तरफ से अपील दाखिल हुई जिसको रेंट कंट्रोल ट्रिब्यूनल ने अस्वीकृत किया। इसका आधार था कि DRC एक्ट की धारा 25B (8) के अंतर्गत वैधानिक प्रतिबंध के कारण अपील सुनने योग्य नहीं है और न ही इसको दाखिल कर सकते है। 1 जुलाई 2022 के फैसले को चुनौती मिली है।
हाईकोर्ट ने इस प्रश्न का उत्तर खोजकर कहा कि इससे जुड़े फैक्ट्स और कंडीशन को गौर से देखने पर चलन वाले वैधानिक प्रावधानों की व्याख्या में ज्यादा सावधानी तय की गई। इससे यही समझ आया कि यह अनुरोध करने का हक नहीं मिलता क्योंकि DRC अधिनियम की धारा 25B (8) के अंतर्गत प्रावधान इसके ऊपर रोक लगाते है।